100 रुपये में 5 बीघा गेहूं की कटाई, 300 रुपये के मजदूरों को कहें अलविदा: जानें इस जबरदस्त मशीन की कीमत और खूबियाँ

100 रुपये में 5 बीघा गेहूं की कटाई
100 रुपये में 5 बीघा गेहूं की कटाई

मैं आजकल अपने गाँव में हूँ और यहाँ गेहूं की कटाई का मौसम जोरों पर है। हर तरफ खेतों में किसान और उनके परिवार वाले व्यस्त दिखाई दे रहे हैं। सुबह से शाम तक बस एक ही काम चल रहा है—गेहूं काटना, उसे इकट्ठा करना और फिर उसे घर तक पहुँचाना। लेकिन इस बार कुछ अलग सा माहौल है। ऐसा लग रहा है जैसे हर साल की तरह इस बार मेहनत तो बराबर हो रही है, पर मुश्किलें पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी परेशानी जो हर किसान के मुँह से सुनाई दे रही है, वो है मजदूरों की कमी और उनकी बढ़ती हुई मजदूरी।

पहले के जमाने में मजदूर आसानी से मिल जाते थे। गाँव में ही लोग एक-दूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। नौजवान शहरों की तरफ भाग रहे हैं, वहाँ फैक्ट्रियों में या दूसरी नौकरियों में लग गए हैं। गाँव में जो मजदूर बचे हैं, उनकी माँग इतनी बढ़ गई है कि उनकी मजदूरी आसमान छू रही है। कोई 300 रुपये दिन माँगता है तो कोई 500 रुपये तक ले रहा है। अब आप ही बताइए, एक किसान जो अपनी मेहनत और पसीने से फसल उगाता है, उसके लिए इतना खर्चा करना आसान है क्या? खेती में पहले ही लागत बढ़ती जा रही है—बीज, खाद, पानी, सब कुछ महंगा हो गया है। ऊपर से मजदूरी का यह बोझ पड़ जाए तो मुनाफा कितना बचता है? कई बार तो लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।

मैंने अपने पड़ोस के रामू काका से इस बारे में बात की। वो बता रहे थे कि इस बार उनके 10 बीघे खेत की कटाई के लिए मजदूर ढूंढने में उनकी नाक में दम आ गया। दो दिन तक गाँव-गाँव घूमे, तब जाकर चार मजदूर मिले। लेकिन मजदूरी सुनकर उनके होश उड़ गए। हर मजदूर ने 400 रुपये दिन के हिसाब से माँगा। चार मजदूरों का एक दिन का खर्च 1600 रुपये। रामू काका ने हिसाब लगाया कि अगर 5-6 दिन भी लग गए तो 8-10 हजार रुपये तो मजदूरी में ही चले जाएँगे। फिर खेत में जो फसल बची है, उसका क्या होगा? मजदूरों की कमी की वजह से कई बार फसल खेत में ही पड़ी रह जाती है, और अगर बारिश या आंधी आ गई तो सब बर्बाद।

यह समस्या सिर्फ रामू काका की नहीं है। गाँव के हर छोटे-बड़े किसान के साथ यही हाल है। जो किसान थोड़ा बहुत ठीक-ठाक कमाते हैं, वो भी इस बार परेशान हैं। मैंने सोचा कि कुछ तो रास्ता निकालना पड़ेगा। तभी मेरे दिमाग में आया कि क्यों न मशीनों का सहारा लिया जाए? आजकल तो खेती में मशीनों का चलन बढ़ रहा है। ट्रैक्टर से लेकर थ्रेशर तक, सब कुछ मशीनों से होने लगा है। तो गेहूं काटने के लिए भी कोई मशीन होगी ही। मैंने इस बारे में थोड़ी छानबीन की और एक ऐसी मशीन के बारे में पता चला जो सचमुच किसानों की जिंदगी आसान कर सकती है।

गेहूं काटने की मशीन: पावर रीपर

जिस मशीन की मैं बात कर रहा हूँ, उसे पावर रीपर कहते हैं। यह कोई साधारण मशीन नहीं है। इसके बारे में जानकर मुझे लगा कि यह तो किसानों के लिए वरदान हो सकती है। यह मशीन सिर्फ गेहूं ही नहीं, बल्कि धान, मक्का, अरहर जैसी फसलों की कटाई भी कर सकती है। इतना ही नहीं, अगर कोई पशुपालक है तो वो इससे बरसीम भी काट सकता है। मतलब यह एक मल्टीटास्किंग मशीन है, जो हर तरह के किसान के लिए फायदेमंद है।

मैंने एक दुकानदार से इसके बारे में और जानकारी ली। उसने बताया कि पावर रीपर से एक दिन में 25 बीघा तक की फसल काटी जा सकती है। अब आप सोचिए, अगर मजदूरों से यह काम करवाया जाए तो कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा होगा। लेकिन इस मशीन से एक ही दिन में इतना काम हो सकता है। और सबसे बड़ी बात, इसे चलाने के लिए ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ एक आदमी इसे चला सकता है। अगर किसान खुद इसे चलाना चाहे तो वो भी आसानी से कर सकता है।

कितना खर्चा, कितना फायदा?

अब बात आती है कि इस मशीन को चलाने में कितना खर्चा आता है। दुकानदार ने बताया कि 5 बीघा फसल काटने के लिए सिर्फ 1 लीटर पेट्रोल चाहिए। आजकल पेट्रोल का दाम करीब 100 रुपये लीटर है। मतलब 100 रुपये में 5 बीघा फसल की कटाई हो जाएगी। अगर मजदूरों से यह काम करवाया जाए तो 5 बीघा के लिए कम से कम 2-3 मजदूर चाहिए होंगे, और उनकी मजदूरी 1000-1500 रुपये तक पड़ेगी। अब आप खुद हिसाब लगाइए कि मशीन से कितना फायदा है।

मैंने अपने एक दोस्त से इस बारे में बात की जो पहले से इस मशीन का इस्तेमाल कर रहा है। उसने बताया कि शुरू में उसे लगा कि मशीन चलाना मुश्किल होगा, लेकिन दो-तीन दिन में ही उसे इसकी आदत पड़ गई। अब वो अपने खेत की कटाई खुद करता है और आसपास के किसानों के खेतों में भी मशीन चलाकर थोड़ी कमाई कर लेता है। उसने कहा, “भाई, यह मशीन मेरे लिए पैसा कमाने का जरिया भी बन गई है। जो किसान मजदूर नहीं ढूंढ पाते, वो मुझे बुलाते हैं और मैं किराए पर उनकी फसल काट देता हूँ।”

मशीन की कीमत और सब्सिडी

अब सवाल यह है कि यह मशीन आती कितने की है। मैंने कई जगह पता किया तो मालूम हुआ कि पावर रीपर की कीमत कंपनी और मॉडल के हिसाब से अलग-अलग होती है। मिसाल के तौर पर, VST कंपनी की पावर रीपर मशीन 1,50,000 से 1,90,000 रुपये के बीच मिल रही है। सुनने में यह कीमत थोड़ी ज्यादा लग सकती है, लेकिन यहाँ अच्छी खबर यह है कि सरकार किसानों को इस पर सब्सिडी दे रही है। कई राज्यों में 40-50% तक की सब्सिडी मिल रही है। मतलब अगर मशीन की कीमत 1,80,000 रुपये है तो सब्सिडी के बाद आपको 90,000-1,00,000 रुपये ही देने पड़ेंगे। इतने में तो एक सीजन की मजदूरी का खर्चा निकल जाता है।

मैंने गाँव के सरपंच से इस बारे में बात की। वो बता रहे थे कि सरकार की तरफ से कई योजनाएँ चल रही हैं, जिनके तहत किसानों को मशीन खरीदने के लिए मदद मिलती है। बस थोड़ी-सी कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है और सब्सिडी सीधे आपके खाते में आ जाती है। कुछ किसानों ने तो लोन लेकर भी यह मशीन खरीदी है, क्योंकि उन्हें पता है कि यह एक बार का निवेश है जो सालों तक फायदा देगा।

मेरी राय

मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि किसान पारंपरिक तरीकों से हटकर नई तकनीक को अपनाएँ। मजदूरों की कमी और बढ़ती मजदूरी का रोना रोने से कुछ नहीं होगा। अगर हम मशीनों का इस्तेमाल करें तो न सिर्फ समय बचेगा, बल्कि पैसा भी बचेगा। पावर रीपर जैसी मशीन न सिर्फ कटाई को आसान बनाती है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर भी बनाती है। वो दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय खुद अपने खेत का काम कर सकते हैं।

अगर आप भी किसान हैं या खेती से जुड़े हैं तो मेरी सलाह है कि एक बार इस मशीन के बारे में जरूर सोचें। अपने नजदीकी कृषि केंद्र पर जाकर इसके बारे में जानकारी लें। हो सकता है कि यह आपके लिए भी एक नया रास्ता खोल दे। खेती में मेहनत तो जरूरी है, लेकिन सही तरीके और सही औजारों से उस मेहनत का फल दोगुना हो सकता है। तो देर किस बात की, चलिए नई सोच के साथ खेती को आसान बनाएँ!

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