क्या जून जुलाई में तेज हो जाएंगे सोयाबीन के बाजार

किसान भाइयों और व्यापारी साथियों,
सोयाबीन का पिछला सीजन अब काफी पीछे छूट चुका है, लेकिन इसके बावजूद बाजार की हालत अब तक संभली नहीं है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की प्रमुख मंडियों में सोयाबीन की औसत कीमतें ₹4350/क्विंटल के आस-पास बनी हुई हैं, जो पिछले साल के ₹5500-₹6000/क्विंटल के मुकाबले ₹1600-₹1800 तक की गिरावट दर्शाती हैं। यह गिरावट न सिर्फ किसानों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि इससे जुड़ी पूरी वैल्यू चेन—पेराई उद्योग से लेकर निर्यात व्यापार तक—पर असर पड़ रहा है।

NAFED की खरीद और MSP की हकीकत

सरकार ने 2025-26 के लिए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹4892 से बढ़ाकर ₹5328 प्रति क्विंटल कर दिया है। लेकिन हकीकत यह है कि खुले बाजार में भाव MSP से काफी नीचे चल रहे हैं। NAFED ने अब तक लगभग 3.60 लाख टन सोयाबीन की नीलामी की है और अधिकांश बिड्स ₹4350 के आसपास ही स्वीकृत किए गए हैं। MSP पर खरीदारी बहुत सीमित है—कुल उत्पादन का सिर्फ 7 से 10% ही MSP पर खरीदा गया है।

मांग में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय दबाव

सोयाबीन की मौजूदा मंदी की एक बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोर मांग है। विशेषकर चीन जैसे बड़े आयातक देशों द्वारा खरीद में कमी आई है। इसके साथ ही भारत सरकार द्वारा कच्चे सोया तेल पर आयात शुल्क में 10% की कटौती की गई है, जिससे घरेलू तेल उद्योग की मांग और भी कमजोर हुई है। जब पेराई उद्योग की मांग घटती है, तो स्वाभाविक रूप से कच्चे माल की कीमतों पर दबाव पड़ता है।

बुवाई में गिरावट के संकेत

इस मौजूदा बाजार दबाव का सीधा असर आगामी सीजन की बुवाई पर भी देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र में सोयाबीन का रकबा पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 2 लाख हेक्टेयर घटने की संभावना है, जिससे कुल रकबा 50 लाख हेक्टेयर के करीब रहने का अनुमान है। यह साफ संकेत देता है कि किसान अब इस फसल से पीछे हटने लगे हैं, खासकर तब जब लागत बढ़ती जा रही है और भाव गिरते जा रहे हैं।

बाजार में सुधार की संभावनाएं

हाल ही में कीर्ति प्लांट पर सोयाबीन के दाम ₹4400 से सुधरकर ₹4500 तक पहुंचे हैं। हालांकि यह एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, लेकिन बाजार में अब भी किसी बड़े सुधार की उम्मीद नजर नहीं आ रही। जानकारों की मानें तो जुलाई के अंत तक बाजार ‘बॉटम’ यानी न्यूनतम स्तर के करीब पहुंच सकता है। इसके बाद अगस्त से अक्टूबर के बीच नई फसल की डिमांड के चलते थोड़ी बहुत मजबूती देखने को मिल सकती है।

आगे क्या?

अगर सरकार जल्द ही कच्चे तेल पर आयात शुल्क में फिर से इजाफा नहीं करती और MSP पर खरीद की सीमा नहीं बढ़ाती, तो बाजार में कोई ठोस सुधार मुश्किल नजर आता है। हालांकि बुवाई क्षेत्र में कमी और पेराई उद्योग की मौजूदा स्थिति यह संकेत दे रही है कि आने वाले महीनों में सोयाबीन की सप्लाई कम हो सकती है। इस स्थिति में धीरे-धीरे कीमतों में सुधार देखने को मिल सकता है, लेकिन यह सुधार बहुत सीमित और धीमी गति से ही होगा।


निष्कर्ष

सोयाबीन उत्पादक किसानों के लिए यह समय चुनौतियों से भरा हुआ है। एक ओर जहां MSP बढ़ा कर राहत देने की कोशिश की गई है, वहीं दूसरी ओर बाजार की मौजूदा सच्चाई बेहद अलग है। अंतरराष्ट्रीय दबाव, कमजोर घरेलू मांग और सीमित सरकारी खरीद ने किसानों को एक बार फिर असमंजस में डाल दिया है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार नीतिगत फैसलों के जरिए न केवल आयात को नियंत्रित करे, बल्कि MSP पर प्रभावी खरीद भी सुनिश्चित करे, ताकि किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य मिल सके।

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